गुर्जर-प्रतिहार वंश भाग प्रथम
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नमस्कार दोस्तों, आज मैं आपको राजस्थान के इतिहास के बारे में बताने जा रहा हूं।
दोस्तों राजस्थान का इतिहास बहुत ही वृहत है। राजस्थान में बहुत से राजाओं और कई वंशजों ने शासन किया है। मैं आगे इस जानकारी को और अधिक न घुमाते हुए आपको आगे का इतिहास बताता हूं।
राजस्थान में अनेक वंशज हुए जैसे गुर्जर- प्रतिहार वंश ,गुहिल वंश, चौहान वंश, राठौर वंश, कछवाहा वंश और अन्य।
हम सर्वप्रथम गुर्जर प्रतिहार वंश के बारे में जानेंगे गुर्जर प्रतिहार वंश कि 26 शाखाओं का वर्णन नैंसी ने उल्लेख किया है जैसे मंडोर, जालौर ,कन्नौज, उज्जैन आदि बड़े-बड़े प्रसिद्ध रहे हैं ।अब सर्वप्रथम बात करते हैं मंडोर के प्रतिहार वंश के बारे में शिलालेखों के अनुसार हरीश चंद्र नामक ब्राह्मण के दो पत्नियां थी एक ब्राह्मणी और दूसरी क्षत्राणी भद्रा। ब्राह्मणी पत्नी से उत्पन्न संतान ब्राह्मण प्रतिहार एवं क्षत्राणी पत्नी से उत्पन्न संतान क्षत्रिय प्रतिहार कहलाए। भद्रा के चार पुत्र उत्पन्न हुये भोगभट्ट,कद्दक,रज्जिल और दह।इन चारों ने मिलकर मंडोर को जीतकर गुर्जर प्रतिहार वंश की स्थापना की। वैसे रज्जिल तीसरा पुत्र था फिर भी मंडोर की वंशावली इससे प्रारंभ होती है। हरीशचंद्र का समय छठी शताब्दी के आसपास का था ।लगभग 100 वर्षों में अपने शासनकाल में मंडोर के प्रतिहारो ने सांस्कृतिक परंपरा को निभा कर अपनी स्वतंत्र प्रेम और शौर्य से उज्जवल कृति को अर्जित किया। इसी शाखा का नागभट्ट प्रथम जो रजील का पोता था, वह बड़ा प्रतापी शासक था। जब उसने देखा कि मंडोर में प्रति हारो की स्थिति मजबूत हो गई है तो उसने अपनी राजधानी को वहां से बदलकर मेड़ता स्थापित किया जो मंडोर से 60 मील से भी अधिक दूरी पर है।
शिलुक
इस वंश के दसवे शासक शिलुक ने वल्ल देश में अपनी सीमा को बढ़ाया और वल्ल मंडल के शासक भाटी देवराज को युद्ध में हराकर उसके क्षेत्र का स्वामी बना। उसकी भाटी वंश की महारानी पद्मिनी से भावुक और दूसरी रानी दुर्लभ देवी से कक्कुक के नाम के दो पुत्र हुए।
बाउक
कक्कुक का पुत्र बाउक हुआ जो अपने शत्रु नंद वल्लभ को मारकर भुअकुप मैं आ गया। यह वह बाउक है, जिसने 837 इसवी की जोधपुर प्रशस्ति में अपने वंश का वर्णन अंकित करा कर मंडोर के एक विष्णु मंदिर में लगवाया था
कक्कुक
बाउक के बाद उसका भाई कक्कुक मंडोर के प्रतिहारो का नेता बना। कक्कुक ने वि.स. 861 ने दौ शिलालेख उत्कीर्ण करवाएं जो घटियाला के लेख के नाम से प्रसिद्ध है इनके अनुसार कक्कुक ने अपने सत्चरित्र से मरू, मांड, वल्ल,तमणी, अज्ज तथा गुजर्रत्रा के निवासियों का अनुराग अर्जित किया ।उसने वदनायन मंडल में पर्वतीय भाग के भीलो की बस्तियों को जलाकर शांति स्थापित की। इन शिलालेखों से उसकी न्याय विजेता तथा प्रजा पालक होने के गुण स्पष्ट होते हैं ।वह स्वयं विद्वान था और विद्वानों को आश्रय देता था।
आगे आपको गुर्जर प्रतिहार वंश के बारे में और जानकारी दूंगा।
अतः मेरे ब्लॉग पर बने रहिए ,धन्यवाद।
नमस्कार दोस्तों, आज मैं आपको राजस्थान के इतिहास के बारे में बताने जा रहा हूं।
दोस्तों राजस्थान का इतिहास बहुत ही वृहत है। राजस्थान में बहुत से राजाओं और कई वंशजों ने शासन किया है। मैं आगे इस जानकारी को और अधिक न घुमाते हुए आपको आगे का इतिहास बताता हूं।
राजस्थान में अनेक वंशज हुए जैसे गुर्जर- प्रतिहार वंश ,गुहिल वंश, चौहान वंश, राठौर वंश, कछवाहा वंश और अन्य।
हम सर्वप्रथम गुर्जर प्रतिहार वंश के बारे में जानेंगे गुर्जर प्रतिहार वंश कि 26 शाखाओं का वर्णन नैंसी ने उल्लेख किया है जैसे मंडोर, जालौर ,कन्नौज, उज्जैन आदि बड़े-बड़े प्रसिद्ध रहे हैं ।अब सर्वप्रथम बात करते हैं मंडोर के प्रतिहार वंश के बारे में शिलालेखों के अनुसार हरीश चंद्र नामक ब्राह्मण के दो पत्नियां थी एक ब्राह्मणी और दूसरी क्षत्राणी भद्रा। ब्राह्मणी पत्नी से उत्पन्न संतान ब्राह्मण प्रतिहार एवं क्षत्राणी पत्नी से उत्पन्न संतान क्षत्रिय प्रतिहार कहलाए। भद्रा के चार पुत्र उत्पन्न हुये भोगभट्ट,कद्दक,रज्जिल और दह।इन चारों ने मिलकर मंडोर को जीतकर गुर्जर प्रतिहार वंश की स्थापना की। वैसे रज्जिल तीसरा पुत्र था फिर भी मंडोर की वंशावली इससे प्रारंभ होती है। हरीशचंद्र का समय छठी शताब्दी के आसपास का था ।लगभग 100 वर्षों में अपने शासनकाल में मंडोर के प्रतिहारो ने सांस्कृतिक परंपरा को निभा कर अपनी स्वतंत्र प्रेम और शौर्य से उज्जवल कृति को अर्जित किया। इसी शाखा का नागभट्ट प्रथम जो रजील का पोता था, वह बड़ा प्रतापी शासक था। जब उसने देखा कि मंडोर में प्रति हारो की स्थिति मजबूत हो गई है तो उसने अपनी राजधानी को वहां से बदलकर मेड़ता स्थापित किया जो मंडोर से 60 मील से भी अधिक दूरी पर है।
शिलुक
इस वंश के दसवे शासक शिलुक ने वल्ल देश में अपनी सीमा को बढ़ाया और वल्ल मंडल के शासक भाटी देवराज को युद्ध में हराकर उसके क्षेत्र का स्वामी बना। उसकी भाटी वंश की महारानी पद्मिनी से भावुक और दूसरी रानी दुर्लभ देवी से कक्कुक के नाम के दो पुत्र हुए।
बाउक
कक्कुक का पुत्र बाउक हुआ जो अपने शत्रु नंद वल्लभ को मारकर भुअकुप मैं आ गया। यह वह बाउक है, जिसने 837 इसवी की जोधपुर प्रशस्ति में अपने वंश का वर्णन अंकित करा कर मंडोर के एक विष्णु मंदिर में लगवाया था
कक्कुक
बाउक के बाद उसका भाई कक्कुक मंडोर के प्रतिहारो का नेता बना। कक्कुक ने वि.स. 861 ने दौ शिलालेख उत्कीर्ण करवाएं जो घटियाला के लेख के नाम से प्रसिद्ध है इनके अनुसार कक्कुक ने अपने सत्चरित्र से मरू, मांड, वल्ल,तमणी, अज्ज तथा गुजर्रत्रा के निवासियों का अनुराग अर्जित किया ।उसने वदनायन मंडल में पर्वतीय भाग के भीलो की बस्तियों को जलाकर शांति स्थापित की। इन शिलालेखों से उसकी न्याय विजेता तथा प्रजा पालक होने के गुण स्पष्ट होते हैं ।वह स्वयं विद्वान था और विद्वानों को आश्रय देता था।
आगे आपको गुर्जर प्रतिहार वंश के बारे में और जानकारी दूंगा।
this is good. provide more history
ReplyDeleteUseful for us
ReplyDeleteतमणी और अज्ज कौनसे क्षेत्र में है ?
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