गुर्जर प्रतिहार वंश भाग तृतीय
http://www.netnic.org
नमस्कार दोस्तों आज हम गुर्जर प्रतिहार वंश के बारे में आगे की जानकारी देने जा रहे हैं तो शुरू करते हैं
नागभट्ट द्वितीय(795-833) ई:
वत्सराज की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र नागभट्ट द्वितीय राजा हुआ ।इसकी माता का नाम सुंदर देवी था। इसने 795 ईसवी से लेकर 833 ईसवी तक शासन किया। अपने इन 38 वर्षों के शासन में इसने प्रतिहार राज्य को एक शक्तिशाली साम्राज्य में परिवर्तित कर दिया ।इसने कन्नौज को जीतकर अपनी राजधानी बनाया। इसका दरबार भी नागावलोक का दरबार कहलाता था। इसने संपूर्ण उत्तरी भारत की विजय की, जिसमें उसके सामंतों गुहिलों एवं चहमानो ने पूरा पूरा साथ दिया। चंद्र प्रभा सूरी के ग्रंथ प्रभावक चरित के अनुसार नागभट्ट द्वितीय ने 833 ईसवी में गंगा में डूब कर आत्महत्या कर ली।
रामभद्र (833-836) ई:-
नागभट्ट द्वितीय की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र राम भद्र सिंहासन पर बैठा। इसने 833 ईसवी से लेकर 836 ईसवी तक राज्य किया ।यह अत्यंत निर्बल शासक सिद्ध हुआ। इसका शासनकाल प्रतिहार वंश की अवनति का काल था। इस काल में प्रतिहार साम्राज्य के अनेक भाग स्वतंत्र हो गए ।इनमें विशेष रूप से उल्लेखनीय कालिंजर मंडल था ।वराह
अभिलेख से प्रकट होता है कि यहां नागभट्ट द्वितीय ने दान दिया था ,परंतु उस दान का अनुमोदन रामभद्रदेव के शासन में हो सका।
मिहिरभोज प्रथम(836-885):-
मिहिरभोज इस वंश का सर्वाधिक महत्वपूर्ण शासक था ।यह राम भद्र का पुत्र था। इसकी माता का नाम अप्पा देवी था। इसका सर्वप्रथम अभिलेख वराह अभिलेख है, जिसकी तिथि 893 विक्रम संवत (836 ईसवी ) है। अतः इस का शासन काल लगभग 836 ईसवी पर आरंभ हुआ होगा ।इसके शासनकाल की अंतिम तिथि 885 ईसवी है ।इसका सर्वाधिक प्रसिद्ध अभिलेख ग्वालियर प्रशस्ति हैं जिससे इस वंश के बारे में काफी जानकारी मिलती हैं। इसने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की, जिसकी स्थाई राजधानी कन्नौज को बनाया ।कश्मीरी कवि कल्हण की" राजतरंगिणी" में मिहिरभोज की उपलब्धियों पर प्रकाश पड़ता है ।अरब यात्री 'सुलेमान' ने मिहिर भोज को भारत का सबसे शक्तिशाली शासक बताया है, जिसने अरबों को रोक दिया था।
Learning computer and internet
ग्वालियर अभिलेख से इस की उपाधि आदिवराह मिलती है ।दौलतपुर अभिलेख किसे प्रभास कहता है, परंतु इसने अपनी मुद्राओं पर आदिवराह की उपाधि उत्कीर्ण करवाई थी ।उसके समय के चांदी और तांबे के सिक्के जिन पर श्रीमदादिवराह अंकित रहता था ,मिले हैं जो उसके पराक्रम और शत्रुओं से राज्य उद्धार के घोतक है ।यह प्रतिहार वंश का ही नहीं वरन प्राचीन भारत वर्ष का एक महान शासक माना जाता है।
मिहिर भोज की राजनीतिक उपलब्धियां
1. कालिंजर मंडल जहां चंदेल नरेश जय शक्ति को पराजित किया था।
2. गुजरात्र: इस पर प्रदेश पर पुनः अपना अधिकार स्थापित करने के लिए मिहिर भोज को मंडोर के प्रतिहार शासक के राजा बाउक का दमन करना पड़ा था।
3. कलचुरी वंश के राजा गुणामबोधी देव को भोजदेव ने भूमि प्रदान की थी।
4. गुहिल नरेश हरशराज मिहिर भोज के अधीन था।
5. हरियाणा - भोज देव के शासनकाल में कुछ व्यापारियों ने वहां के बाजार में घोड़ों का क्रय विक्रय किया था।
6. पालो से युद्ध- मिहिरभोज को अपने समकालीन पाल नरेश देवपाल से भी युद्ध करना पड़ा। देवपाल के बाद उसके उत्तराधिकारी नारायण पाल को मिहिरभोज ने बुरी तरह प्राप्त किया।
7. राज्य विस्तार- मिहिरभोज ने अपने शौर्य से ना केवल अपने पैतृक राज्य की रक्षा की वरन उस का और अधिक विस्तार किया। उसका राज्य उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में बुंदेलखंड तक और पूर्व में उत्तर प्रदेश से लेकर पश्चिम में गुजरात और काठियावाड़ तक विस्तृत था। इस राज्य में राजपूताना का अधिकांश भाग भी सम्मिलित था।
राज्य त्याग:- स्कंद पुराण के अनुसार मिहिर भोज ने तीर्थ यात्रा करने के लिए अपने पुत्र महेंद्र पाल को राज्यभर सौंप करें सिंहासन त्याग दिया था।
महेंद्र पाल प्रथम (885-910 ई)
मिहिर भोज के पश्चात उसका पुत्र महेंद्र पाल प्रथम प्रतिहार वंश का राजा हुआ। तत्कालीन अभिलेखों में उसे महेंद्र पाल ,महिंद्र पाल, महेश पाल और महिंद्रा युद्ध नामों से पुकारा गया है ।इसका राज कवि राजशेखर उसे रघुकुल चूड़ामणि ,निर्भय राज ,निर्भय नरेंद्र आदि नामों से संबोधित करता है। इसकी माता का नाम चन्दर्भट्टारिका देवी था ।उसने 885 ईस्वी से 910 ईस्वी तक राज्य किया। इसने परम भट्ठारक ,परम भागवत, महाराजा धीराज, परमेश्वर आदि विशाल उपाधिया धारण की ।इसके समय में कन्नौज हिंदू सभ्यता एवं संस्कृति का महान केंद्र बन गया तथा शक्ति और सौंदर्य में इसकी बराबरी करने वाला दूसरा नगर न रहा ।यह भी बड़ा महत्वाकांक्षी शासक सिद्ध हुआ।
भोज द्वितीय (910-913 ई)
महेंद्र पाल के शासन की अंतिम तिथि 910 ईसवी है ।ऐसा प्रतीत होता है कि उसके दो पुत्र थे भोज द्वितीय और महिपाल प्रथम। इनमें से भोज द्वितीय का उल्लेख एशियाटिक सोसायटी ताम्रपत्र में हुआ है ।वहां इसे महेंद्र पाल और देहनागादेवी का पुत्र बताया गया है। इसी प्रकार असनी अभिलेख महिपाल प्रथम का उल्लेख करता है ,उसमें उसे महेंद्र पाल और मही देवी का पुत्र बताया गया है। इस प्रकार स्पष्ट हो जाता है कि यह दोनों राजकुमार सौतेले भाई थे। भोज द्वितीय ने संभवत 910 इस विषय लेकर 913 ईसवी तक राज्य किया ,क्योंकि महिपाल प्रथम की सर्वप्रथम तिथि 914 ईस्वी प्राप्त होती है।
महिपाल प्रथम (914-943 ई )
राजशेखर इसे आर्यव्रत का महाराजाधिराज कहता है ।इसके समय में अरब यात्री अलमसुदी ने भारत की यात्रा की तथा इसकी शक्ति एवं वैभव की प्रशंसा की। हल्लद अभिलेख से प्रकट होता है कि महिपाल प्रथम 914 ईसवी में राज्य कर रहा था। यह एक कुशल और प्रतापी शासक सिद्ध हुआ। इसने अपने वंश को पुनः गौरव प्रदान किया।
महेंद्र पाल द्वितीय (945-948 ई)
महिपाल प्रथम की मृत्यु के पश्चात महेंद्र पाल द्वितीय सिंहासन पर बैठा। इसकी माता का नाम प्रसाधना देवी था ग्रंथो की रचना से महेंद्र पाल के समय के समाज ,शिक्षा स्तर आदि का बोध होता है ।महेंद्र पाल का समय 946 से 948 ईसवी रहा ।इसके बाद 960 ई तक प्रतिहार वंश में चार शासक हुए - देवपाल 948 से 49 ईसवी, विनायक पाल द्वितीय 953 से 54 ईसवी, महिपाल द्वितीय 955 ईसवी तथा विजयपाल 960 ईसवी।
विजयपाल
राजौर अभिलेख में इसे क्षतिपाल देव का पुत्र बताया गया है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि यह महेंद्र पाल द्वितीय का पुत्र और देव पाल का भाई था। इसके शासनकाल की तिथि उसी अभिलेख में 960 ईसवी मिलती है।
राज्यपाल
विजय पाल की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र राज्यपाल 990 ईसवी के लगभग प्रतिहार राजसिंहासन पर बैठा। इस समय देश के सामने अनेक प्रकार के संकट थे। इसमें सबसे बड़ा संकट मुस्लिम आक्रमण की संभावना का था। देवपाल के पोते राज्यपाल के समय में महमूद गजनवी ने कन्नौज पर चढ़ाई कर उसे अधिक निर्बल बना दिया।
त्रिलोचन पाल (1019-1027 ई)
ऐसा प्रतीत होता है कि राज्यपाल की मृत्यु के बाद उसका पुत्र त्रिलोचन पाल प्रतिहार वंश का राजा हुआ ।1019 ईस्वी में महमूद ने भारत वर्ष पर फिर आक्रमण किया और त्रिलोचन को पराजित किया ।इसके पश्चात उसी नाम के प्रतिहार नरेश त्रिलोचन पाल की बारी आई। अलबरूनी के वर्णन से प्रकट होता है कि, इस समय कन्नौज प्रतिहारो की राजधानी न था ।उनकी राजधानी "बारी" में थी ,जो राम गंगा और सरयू के संगम के निकट था ।विद्याधर ने इसे आक्रमण के समय त्रिलोचन की कोई सहायता नहीं कि परिणाम यह हुआ कि महमूद ने उस राज्य को खूब लूटा।
यशपाल
यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि त्रिलोचन पाल के पश्चात प्रतिहार वंश में कौन राजा हुआ ।इलाहाबाद जिले में "कड़ा" नामक स्थान पर 1036 ईसवी का लेख मिला है। इसमें महाराजाधिराज यशपाल व उसके दान का वर्णन है ।यह संभव है कि यह त्रिलोचन पाल का उत्तराधिकारी हो। इसके पश्चात किसी अन्य प्रतिहार नरेश का नाम ज्ञात नहीं होता। अंत में 1093 ईसवी के आसपास चंद्रदेव गहड़वाल ने प्रतिहारो से कन्नौज छीनकर इनके अस्तित्व को समाप्त कर दिया।
प्रसिद्ध इतिहासकार बीएन पाठक अपने ग्रंथ 'उत्तर भारत का राजनीतिक इतिहास' में प्रतिहार शासक महेंद्र पाल प्रथम को ही हिंदू भारत का 'अंतिम महान हिंदू सम्राट' स्वीकार करते हैं।
कवि राजशेखर, कवि पंपा ,जैन आचार्य जिनसेन आदि प्रतिहार कालीन विभूतियां थी जिन्होंने इस काल को अमर बना दिया।
तो दोस्तों इस प्रकार गुर्जर प्रतिहार वंश का समापन होता है ।मेरी जानकारी में जितना मुझे ज्ञात था वह मैंने आपको बता दिया है कोई गलती हो तो क्षमा करना धन्यवाद।
No comments:
Post a Comment